तुझे भी जांचते अपना भी इम्तिहाँ करते कहीं चराग़ जलाते कहीं धुआँ करते कई थे जल्वा-ए-नायाब तुझ से पहले भी किस आसरे पे तिरा नक़्श जावेदाँ करते सफ़ीना डूब रहा था तो क्यूँ न याद आया तिरी तलब तिरे अरमाँ को बादबाँ करते मोहब्बतें भी तिरी हैं शिकायतें भी तिरी यक़ीन तुझ पे न होता तो क्यूँ गुमाँ करते हवा थी तेज़ जलाते रहे दिलों में चराग़ कटी है उम्र लहू अपना राएगाँ करते वो बे-जहत का सफ़र था सवाद-ए-शाम न सुब्ह कहाँ पे रुकते कहाँ याद-ए-रफ़्तगाँ करते दयार-ए-ख़्वाब में ठहरे हिसार-ए-गुल में रहे मगर ये ग़म ही रहा ख़ुद को शादमाँ करते