तुझे है मश्क़-ए-सितम का मलाल वैसे ही हमारी जान थी जाँ पर वबाल वैसे ही चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई का सो आ गया है तुम्हारा ख़याल वैसे ही हम आ गए हैं तह-ए-दाम तो नसीब अपना वगरना उस ने तो फेंका था जाल वैसे ही मैं रोकना ही नहीं चाहता था वार उस का गिरी नहीं मिरे हाथों से ढाल वैसे ही ज़माना हम से भला दुश्मनी तो क्या रखता सो कर गया है हमें पाएमाल वैसे ही मुझे भी शौक़ न था दास्ताँ सुनाने का 'फ़राज़' उस ने भी पूछा था हाल वैसे ही