तुझे हुस्न ने क्या से क्या कर दिया इधर देख ओ बुत ख़ुदा कर दिया तबीअ'त में पैदा मज़ा कर दिया मोहब्बत ने दर्द-आश्ना कर दिया बहुत दोस्ती जिन से गाढ़ी छनी उन्हीं ने मज़ा किरकिरा कर दिया मैं क़ुर्बान ऐ ना-उमीदी तिरे मिरे दिल को बे-मुद्दआ कर दिया दम-ए-नज़अ आए ये कह कर चले जो वा'दा किया था वफ़ा कर दिया इधर आ गले से लगा लूँ तुझे मिरी जान किस ने ख़फ़ा कर दिया सबा ला के तू ने दर-ए-यार पर मिरी ख़ाक को कीमिया कर दिया इलाही सज़ा है ये किस जुर्म की कि इस पर मुझे मुब्तला कर दिया बहुत मरने जीने के झगड़े रहे तिरे तीर ने फ़ैसला कर दिया मिला आज 'हामिद' अजब हाल था उसे इश्क़ ने क्या से क्या कर दिया