तुझे खो कर तिरी ही याद में ख़ुद को मगन करना ख़यालों में तुझे छूना तसव्वुर में सुख़न करना कहाँ तक ग़म को सीने में लगा रक्खेंगे हम आख़िर कहाँ तक ज़िंदगी को मरकज़-ए-रंज-ओ-मेहन करना ये सच है इशरतें मिलती हैं बद-कारों को दुनिया में मगर क्यों उन की ख़ातिर ज़िंदगी को बद-चलन करना शराफ़त की हदों को पार करके ढूँढना इज़्ज़त हमें आता नहीं ये ढोंग ये दीवाना-पन करना हमें बाद-ए-मुख़ालिफ़ लाख रोके हम नहीं ख़ाइफ़ हमें आता है मक़्सद के लिए लड़ना जतन करना न करना काम दफ़्तर में लगाना बॉस को मस्का ब-वक़्त-ए-गुफ़्तुगू तर शहद में अपने सुख़न करना जवानी चार दिन की है हँसें खेलें मज़े ले लें उदासी ओढ़ कर क्यों चाँद सूरत को गहन करना 'अज़ीम' इस दिल को सरशारी ख़याल-ए-यार बख़्शेगा हमें आता है अपनी ख़ल्वतों को अंजुमन करना