तुझे क्या बताऊँ ऐ दिलरुबा तिरे सामने मिरा हाल है मुझे जुस्तुजू है फ़क़त तिरी मुझे सिर्फ़ तेरा ख़याल है है नज़र में मेरी तो तू ही तू मेरा साँस तेरा ही गीत है मैं भुला सकूँ तुझे दिलरुबा भला कब ये मेरी मजाल है मिरे जिस्म में तू है हर जगह मिरे होश में तू मुक़ीम है मैं मुतीअ हूँ तेरा ही दिलरुबा मिरे ग़म की रात हिलाल है मैं तो ज़िंदा तेरे ही दम से हूँ मिरी आरज़ू की तू ज़िंदगी तिरी बेवफ़ाई की इक नज़र मिरी ज़िंदगी का सवाल है तिरी क़ुर्बतों की तलब मुझे तिरी दीद की मुझे जुस्तुजू कि बग़ैर जिस के ऐ माह-रू मिरी ज़िंदगी भी मुहाल है सर-ए-शाम ही से न जाने क्यों है जिगर में टीस सी दर्द की तिरे हिज्र ही में ऐ दिलरुबा यही इश्क़ का ज़र-ओ-माल है तिरे ग़म में 'ग़म' को मिला है ग़म तुझे किस तरह से सुकूँ कहूँ तिरे ग़म में ऐसी ख़ुशी मिली जो कि ग़म की ज़िंदा मिसाल है