तुझे नक़्श-ए-हस्ती मिटाया तो देखा जो पर्दा था हाइल उठाया तो देखा ये सब तेरे ही हुस्न का परतव है न देखा तुझे तेरा साया तो देखा बुरा मानिए मत मिरे देखने से तुम्हें हक़ ने ऐसा बनाया तो देखा न हूँ क्यूँकि 'ममनून' पीर-ए-मुग़ाँ का ये आलम जो साग़र पिलाया तो देखा