तुझे पुकारा है बे-इरादा जो दिल दुखा है बहुत ज़ियादा नदीम हो तेरा हर्फ़-ए-शीरीं तो रंग पर आए रंग-ए-बादा अता करो इक अदा-ए-दैरीं तो अश्क से तर करें लिबादा न जाने किस दिन से मुंतज़िर है दिल-ए-सर-ए-रह-गुज़र फ़ितादा कि एक दिन फिर नज़र में आए वो बाम-ए-रौशन वो दर कुशादा वो आए पुर्सिश को फिर सजाए क़बा-ए-रंगीं अदा-ए-सादा