टुक बैठ तू ऐ शोख़-ए-दिल-आराम बग़ल में आए नहीं इस दिल को भी आराम बग़ल में क्यूँ कर के न गुलख़न की तरह आह जलें हम इक आग है याँ जिस का है दिल नाम बग़ल में सर रख के गरेबान में कर सैर जहाँ की आईना तिरे जेब में है जाम बग़ल में किस तरह 'रज़ा' तू न हो रुस्वा-ए-ज़माना जब दिल सा तिरे बैठा हो बदनाम बग़ल में