टुक क़ैस को छेड़-छाड़ कर इश्क़ लिपटा मुझे पंजे झाड़ कर इश्क़ ख़म ठोंक मिरी हुआ मुक़ाबिल फ़रहाद को दूँ पछाड़ कर इश्क़ आया कज ओ वा-कज इस तरफ़ को वामिक़ का घर उजाड़ कर इश्क़ बे-फ़ौज-ए-सरिश्क ओ परचम-ए-आह झपटा यूँ भीड़-भाड़ कर इश्क़ अल-क़िस्सा सभों के हो मुक़ाबिल पहुँचा अब हम को ताड़ कर इश्क़ ता-दामन-ए-कोह खेंच लाया जंगल में उन्हों को गाड़ कर इश्क़ हम इश्क़ अल्लाह बोले तो भी चिंघाड़ के आए फाड़ कर इश्क़ है है 'इंशा' हमारे दिल को बे-तरह गया लताड़ कर इश्क़