तुलू-ए-इश्क़ के मंज़र थमे थे कहीं कासे कहीं पर सर थमे थे नज़र दहशत-ज़दा यूँही नहीं थी ख़यालों में बहुत से डर थमे थे बरसना था जिन्हें आँखों से मेरी वही बादल कहीं ऊपर थमे थे दिल-ए-मुज़्तर तड़पने लग गया था अजब तूफ़ान साँसों पर थमे थे तुम्हारी राह के पत्थर थे जितने हमारे पाँव में आ कर थमे थे कई आसेब यादों के 'दिया' जी हमारी रूह के अंदर थमे थे