तुम आ रहे हो कि जा रहे हो बताओ क्यों मुस्कुरा रहे हो ये कैसा जल्वा दिखा रहे हो निगाह-ओ-दिल में समा रहे हो करोगे क्या ख़ाक ख़ाना-ए-दिल नज़र से बिजली गिरा रहे हो मिलेगा क्या ऐसा कर के तुम को क्यों मुझ को नाहक़ सता रहे हो है आरज़ी कर्र-ओ-फ़र तुम्हारा ये जश्न जो तुम मना रहे हो मनाएगा ख़ैर अपनी कब तक जिसे तुम अब तक बचा रहे हो लहू पुकारेगा आस्तीं का जो क़त्ल कर के छुपा रहे हो जहाँ में कर देगा तुम को रुस्वा जो ज़ुल्म 'बर्क़ी' पे ढा रहे हो