तुम हो जब मेरे लिए हैं दो-जहाँ मेरे लिए ये ज़मीं मेरे लिए ये आसमाँ मेरे लिए इस तरह जज़्बात-ए-आज़ादी बहल जाएँगे क्या बन रहा है क्यूँ क़फ़स में आशियाँ मेरे लिए मैं चला जाऊँ न गुलशन छोड़ कर क़ब्ल-अज़-बहार क्यूँ गिरीं सारे चमन पर बिजलियाँ मेरे लिए रो रहा हूँ आज मैं सारे जहाँ के वास्ते रोएगा कल देखना सारा जहाँ मेरे लिए इज़्तिराब-ए-शौक़ से क्या क्या हुई हैं लग़्ज़िशें इल्तिफ़ात-ए-यार ने जब इम्तिहाँ मेरे लिए है मोहब्बत कब रहीन-ए-राह-ओ-रस्म-ए-ताहिरी बंदगी है बे-नियाज़-ए-आस्ताँ मेरे लिए बे-पनाही है यही 'बिस्मिल' जो हुस्न-ओ-इश्क़ की होगी ना-काफ़ी हयात-ए-जाविदाँ मेरे लिए