तुम हो या छेड़ती है याद-ए-सहर कोई तो है खटखटाता है जो ये ख़्वाब का दर कोई तो है दिल पे पड़ती हुई दुज़्दीदा-नज़र कोई तो है जिस तरफ़ देख रहा हूँ मैं उधर कोई तो है ऐसे नादाँ नहीं रातों में भटकने वाले जागती आँखों में ख़ुर्शीद-ए-सहर कोई तो है ख़ुद-बख़ुद हाथ गरेबाँ की तरफ़ उठते हैं सरसराती सी हवाओं में ख़बर कोई तो है किस का मुँह देख रही है सफ़र-आमादा हयात सू-ए-मक़्तल ही सही राहगुज़र कोई तो है तू मुझे देख मिरे पाँव के छालों पे न जा ज़िंदगी तेरे लिए ख़ाक-बसर कोई तो है दिन कटा सारा ख़राबों में भटकते 'अख़्तर' शाम होती है चलो ख़ैर से घर कोई तो है