तुम जिस को ढूँडते हो ये महफ़िल नहीं है वो लोगों के इस हुजूम में शामिल नहीं है वो रस्तों के पेच-ओ-ख़म ने कहीं और ला दिया जाना हमें जहाँ था ये मंज़िल नहीं है वो दरिया के रुख़ को मोड़ के आए तो ये खुला साहिल के रंग और हैं साहिल नहीं है वो दुनिया में भाग-दौड़ का हासिल यही तो है हासिल हर एक चीज़ है हासिल नहीं है वो 'आलम' दिल-ए-असीर को समझाऊँ किस तरह कम-बख़्त ए'तिबार के क़ाबिल नहीं है वो