तुम जो आ जाओ तो महफ़िल को चराग़ाँ कर दूँ वर्ना जी चाहता है ज़िंदगी वीराँ कर दूँ मुझ को आता है हुनर गुत्थियाँ सुलझाने का आ तिरी ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर को आसाँ कर दूँ 'इश्क़ की जंग में इस बात पे करता हूँ 'अमल उन को रुस्वा न करूँ ख़ुद को पशेमाँ कर दूँ घर मिरे आने का झूठा ही इरादा कर लो ता-अबद आस में हर गोशा फ़रोज़ाँ कर दूँ