तुम कभी माइल-ए-करम न हुए मेरी क़िस्मत के दूर ग़म न हुए अश्क-रेज़ी से हम हुए बे-दम तेरे दामन के तार नम न हुए हम ने तौर-ए-वफ़ा नहीं बदला तेरे ज़ुल्म-ओ-सितम भी कम न हुए थक गए राह की सऊबत से मेरे साथी मिरे क़दम न हुए रास्ते में जो थक के बैठ गए ज़िंदगी-भर वो ताज़ा-दम न हुए मुल्तफ़ित वो रहे ज़माने पर मोरिद-ए-लुत्फ़ एक हम न हुए जिन की ख़ातिर 'हज़ीं' उठाए ग़म वो भी अपने शरीक-ए-ग़म न हुए