तुम खुल रहे थे ग़ैर से छाँव तले खड़े हम दस्त-ए-रश्क धूप में अपने मले खड़े हम देख तुम को दौड़े कि मिल लें गले खड़े तुम भूल हम को रह गए जानी भले खड़े बैठो जी मल के मेहंदी दिखाओ उठा न हाथ हाथों से हम तुम्हारे बहुत हैं जले खड़े है हर नफ़स के साथ हवाई व फुलझड़ी ये नख़्ल-ए-आह ज़ोर हैं फूले फले खड़े है हम पे तोहमत-ए-मरज़-ए-इश्क़ 'अज़फ़री' हम तुम हैं देखो ठनी से चँगे भले खड़े