तुम ने कैसा ये राब्ता रक्खा न मिले हो न फ़ासला रक्खा नहीं चाहा किसी को तेरे सिवा तू ने हम को भी पारसा रक्खा फूल खिलते ही खुल गईं आँखें किस ने ख़ुश्बू में सानेहा रक्खा तू न रुस्वा हो इस लिए हम ने अपनी चाहत पे दायरा रक्खा झूट बोला तो उम्र भर बोला तुम ने इस में भी ज़ाबता रक्खा कोई देखे ये सादगी अपनी फूल यादों का इक सजा रक्खा 'साद' उलझा रहा मगर उस ने तुझ से मिलने का रास्ता रक्खा