तुम पसीना मत कहो है जाँ-फ़िशानी का लिबास धूप में चलते हुए रखते हैं पानी का लिबास पर्दा-पोशी कम से कम होती है हर किरदार की पैरहन लफ़्ज़ों का बनता है कहानी का लिबास फिर उजाले से सफ़र होगा अंधेरे की तरफ़ जब उतारेंगे बदन से उम्र-ए-फ़ानी का लिबास साथ चलते हैं चहकते बोलते इल्ज़ाम भी बे-शिकन होता नहीं यारो जवानी का लिबास इंक़िलाब-ए-वक़्त का ये भी करिश्मा देखिए है नुमाइश के लिए अब आँ-जहानी का लिबास मुफ़लिसी ने कर दिया है उस की ख़ुद्दारी का ख़ून वो पहनता है किसी की मेहरबानी का लिबास हुक्मराँ तो दफ़्न हैं तारीख़ के औराक़ में दर्स-ए-इबरत दे रहा है हुक्मरानी का लिबास जगमगाता है ग़ज़ल के जिस्म पर हर दौर में मैला होता ही नहीं जादू-बयानी का लिबास चंद साअत भी ख़ुशी की अपनी क़िस्मत में कहाँ रास कब आया है मुझ को शादमानी का लिबास 'रम्ज़' वो अहद-ए-ग़ुलामी हो कि दौर-ए-हुर्रियत इश्तिहार-ए-मुफ़लिसी हिन्दुस्तानी का लिबास