तुम से भी बातचीत हो दिल से भी गुफ़्तुगू रहे ख़्वाब ओ ख़बर का सिलसिला यूँही कभू कभू रहे दर्द भी हाथ थाम ले ज़ख़्म भी बोलने लगें यानी निहाल-ए-शाख़-ए-ग़म ऐसे ही बा-नुमू रहे इश्क़ में एहतियात ही गोया है पास-ए-वज़्-ए-इश्क़ चाक हों सद-हज़ार और दामन-ए-दिल रफ़ू रहे तू जो नहीं तो मैं नहीं मैं जो नहीं तो तू कहाँ दोनों तरह थी बात एक मैं रहूँ या कि तू रहे और मता-ए-जान-ओ-दिल कुछ भी न मुझ को चाहिए सीने में इक चराग़ सा आँख में इक लहू रहे एक चराग़ हँस पड़ा ताक़ में एहतियात से और हवा सहम गई फूल की आबरू रहे एक लकीर रो पड़ी दोनों हथेलियों के बीच रंग-ए-हिना छुपा गया हाथ लहू लहू रहे