तुम थे और आलाम बहुत थे और वो सुब्ह-ओ-शाम बहुत थे तुझ में भी कुछ बात है वर्ना दीवाने बदनाम बहुत थे मैं ही रहा इक प्यास का मारा मयख़ाने में जाम बहुत थे चंद ही नज़रें वाँ तक पहुँचीं नज़्ज़ारे सर-ए-बाम बहुत थे ज़ानू-ओ-सर की लाज रही है पहरे तो हर गाम बहुत थे आप मिरा क्यों दम भरते हैं मुझ पर ही इल्ज़ाम बहुत थे फ़िक्र-ए-'दौर' को तुम से पहले तेरे मेरे काम बहुत थे