तुम तो औरों पे न पत्थर फेंको आईना-ख़ानों में रहने वालो कुछ तो हो सूरत-ए-तज्दीद-ए-वफ़ा मैं भी सोचूँ ज़रा तुम भी सोचो मैं बहर-हाल तुम्हारा हूँ मगर काश तुम भी मुझे अपना समझो न सुनो टूटे हुए दिल की सदा दो घड़ी पास तो आ कर बैठो खोल कर बंद दरीचा 'नासिर' डूबते चाँद का मंज़र देखो