तुम्हारे लब पे मेरा नाम ख़्वाब लगता है मगर ये लम्हा बड़ा कामयाब लगता है मैं अपने यार की ताब-ओ-तपिश बताऊँ क्या ज़मीं पे उतरा हुआ आफ़्ताब लगता है महक तो है ही नहीं रंग भी उबूरी हैं वो देखने में सभी को गुलाब लगता है भले के काम तो हम करते रहते हैं लेकिन न जाने किसी को हमारा सवाब लगता है तू चाहता है कि आकाश आए धरती पर तिरा सवाल मुझे ला-जवाब लगता है वो राहबर है वही रास्ता दिखाएगा भटकते रहना हमें भी ख़राब लगता है मैं उस को सूरत-ए-ख़रगाह-ओ-ख़ेमा हूँ 'उल्फ़त' मिरा सनम मुझे मिस्ल-ए-तनाब लगता है