तुम्हारे नाम पर दरिया बनेगा ये चेहरा बा'द में सहरा बनेगा निकलना पड़ रहा है जैसे घर से हमारी क़ब्र पर रस्ता बनेगा जबीं मेहराब से आगे की सोचे ज़मीं पर तब कोई सज्दा बनेगा वो जिस कोने में क़ैदी रो रहा है वहाँ इक रोज़ दरवाज़ा बनेगा तुम्हें अपना बना कर सोचता हूँ मुक़द्दर अब तुम्हारा क्या बनेगा जला कर राख कर डालेगा सूरज यहाँ जिस जिस का भी साया बनेगा