तुम्हारी याद तुम्हारे ख़याल का मौसम हमारे दिल में है उतरा कमाल का मौसम फ़लक के चाँद का भी रंग फीका पड़ जाए अयाँ जो हो कभी तेरे जमाल का मौसम तू अब की इश्क़ में तासीर बढ़ने वाली है हुआ है ख़त्म जो ये ख़द्द-ओ-ख़ाल का मौसम बिछड़ते वक़्त जो मैं ने सबब नहीं पूछा तमाम उम्र रहा फिर मलाल का मौसम कभी मैं भूल के ख़ुद पे ग़ुरूर कर बैठा शुरूअ' तब से है मेरे ज़वाल का मौसम