तुम्हारे होने का शायद सुराग़ पाने लगे कनार-ए-चश्म कई ख़्वाब सर उठाने लगे पलक झपकने में गुज़रे किसी फ़लक से हम किसी गली से गुज़रते हुए ज़माने लगे मिरा ख़याल था ये सिलसिला दियों तक है मगर ये लोग मिरे ख़्वाब भी बुझाने लगे न-जाने रात तिरे मय-कशों को क्या सूझी सुबू उठाते उठाते फ़लक उठाने लगे वो घर करे किसी दिल में तो ऐन मुमकिन है हमारी दर-बदरी भी किसी ठिकाने लगे मैं गुनगुनाते हुए जा रहा था नाम तिरा शजर हजर भी मिरे साथ गुनगुनाने लगे हुदूद-ए-दश्त में आबादियाँ जो होने लगीं हम अपने शहर में तन्हाइयाँ बसाने लगे धुआँ धनक हुआ अँगार फूल बनते गए तुम्हारे हाथ भी क्या मोजज़े दिखाने लगे 'रज़ा' वो रन पड़ा कल शब ब-रज़्म-ए-गाह-ए-जुनूँ कुलाहें छोड़ के सब लोग सर बचाने लगे