तुम्हारे जाने का ग़म मनाऊँगा देख लेना मैं हिज्र-ए-सहरा में ख़ाक उड़ाऊँगा देख लेना मिरा ये दा'वा है मुद्दतों तक मैं बन के आँसू तुम्हारी आँखों में झिलमिलाउँगा देख लेना वो सारी ग़ज़लें जो बस तुम्हारे लिए लिखी थीं वो अब मैं हर शख़्स को सुनाऊँगा देख लेना ये तुम जो मुझ से ज़रा सी बातों पे रूठते हो मैं सारी दुनिया से रूठ जाऊँगा देख लेना तुम्हारी सोहबत में इतना ख़ुश हूँ कि हँस रहा हूँ तुम्हारी फ़ुर्क़त में ख़ूँ बहाऊँगा देख लेना वो इक समुंदर उदासियों का जो रूह में है मैं उस समुंदर में डूब जाऊँगा देख लेना तुम्हारी चौखट पे जान दे कर अमर रहूँगा तुम्हारी नब्ज़ों में थरथराऊँगा देख लेना वो ख़त तुम्हारे जो जान से भी अज़ीज़-तर हैं मैं एक इक कर के सब जलाऊँगा देख लेना इक उस का ग़म ही मिरा मुक़द्दर कोई है 'नासिर' अभी तो मैं कितने ग़म उठाऊँगा देख लेना