तुम्हारे पास रहें हम तो मौत भी क्या है मगर जो दूर कटे तुम से ज़िंदगी क्या है जब उठ के चल दिए तुम तीरगी उमड आई जो तुम न हो तो चराग़ों की रौशनी क्या है कुछ ऐसे फूल भी गुज़रे हैं मेरी नज़रों से जो खिल के भी न समझ पाए ज़िंदगी क्या है बस उन की याद के हम पाँव चूम लेते हैं हमें ख़बर नहीं मेराज-ए-बंदगी क्या है कभी जो गोश-बर-आवाज़ हो के उस को सुनो तुम्हें पता भी चले साज़-ए-ख़ामुशी क्या है मिरी निगाह ने क्या क्या न ख़्वाब देखे हैं तिरी निगाह ने इक बात सी कही क्या है हमीं ने ज़ुल्मत-ए-हस्ती में दिल जलाए हैं ये हम समझते हैं दरमान-ए-तीरगी क्या है उभर रही है जो रह रह के दिल की धड़कन में वो आरज़ू है कि है उस की बेबसी क्या है ख़िज़ाँ-नसीब हों नज़रें जो अहल-ए-गुलशन की तो फिर बहार के जल्वों की ताज़गी क्या है जहाँ में ये कभी मजबूर है कभी मुख़्तार है एक शो'बदा 'आज़ाद' आदमी क्या है