तुम्हारी याद का साया न होगा कोई बहता हुआ दरिया न होगा ये मंज़र भी नज़र आएगा इक दिन बदन होगा कोई चेहरा न होगा ज़माने होंगे मेरी दस्तरस में तुम्हारे क़ुर्ब का लम्हा न होगा समुंदर की तरह वो शांत लेकिन लह्हू उस आँख से टपका न होगा फ़क़त सन्नाटे में चीख़ा करेंगे मकाँ होंगे कोई बस्ता न होगा