तुम्हारी याद से दिल-बस्तगी सी होती जाती है हमारी ज़िंदगी अब ज़िंदगी सी होती जाती है तुम्हारे रू-ए-अनवर के तसव्वुर ही के सदक़े में दिल-ए-ग़म-गीं में पैदा रौशनी सी होती जाती है धड़कता है दिल-ए-महजूर हर-दम याद में उस की हरम के शौक़ में वारफ़्तगी सी होती जाती है फ़ज़ा-ए-मस्त-ए-तैबा इम्बिसात-ए-दिल का बाइ'स है वहाँ हर इक पे तारी सरख़ुशी सी होती जाती है मुबारक 'तहनियत' याद-ए-मदीना में ये बेताबी इसी तक़रीब में ये शाइरी सी होती जाती है