तुम्हारी याद से निकली उदासी मुझे तस्लीम है ऐसी उदासी मिलन वो आख़िरी भूला न अपना न उस के बाद की पहली उदासी समुंदर से भी गहरा दिल हमारा हमारे दिल से भी गहरी उदासी बहुत से पैरहन बदले हैं दिल ने मगर आख़िर को फिर पहनी उदासी किसी ने अपने अंदर जज़्ब कर ली किसी ने चेहरे तक रक्खी उदासी किसी के लब पे है मुस्कान झूटी किसी की शक्ल पर फ़र्ज़ी उदासी कोई हर्फ़-ए-सुख़न तक ले गया है किसी ने साज़ पर गाई उदासी किसी तख़्लीक़ में ढल जाए जब तू हर इक पहलू से है अच्छी उदासी अभी शोर-ए-तरब थम जाएगा जब हमारे क़ल्ब से गूँजी उदासी ज़रा सी देर ख़ुशियों की फ़ज़ाएँ फिर इस के बाद इक लम्बी उदासी ख़ुद अपने आप तक सिमटे हुओं की बड़ी ही दूर तक फैली उदासी उदास इस बार मैं ये सोच कर हूँ तिरे होते हुए कैसी उदासी उदासी ने भी आख़िर तंग आ कर ये मुझ से कह दिया इतनी उदासी 'अमर' हद्द-ए-नज़र तक देखता हूँ मैं तुझ में बस उदासी ही उदासी