तुम्हारी याद में ये बे-ख़ुदी का आलम है न ज़िंदगी की ख़ुशी है न मौत का ग़म है वो एक अश्क का क़तरा जो हासिल-ए-ग़म है वही तो ज़ख़्म-ए-जिगर का हमारे मरहम है मक़ाम अपना है इस तरह दार-ए-फ़ानी में कि जैसे दामन-ए-गुल पर सबात-ए-शबनम है बदल सके न क़फ़स के मसाइब-ओ-आलाम हमारी फ़ितरत-ए-आज़ाद कितनी मोहकम है मिटा चुके थे जो मुझ को मिसाल-ए-हर्फ़-ए-ग़लत ज़बाँ पे उन की मेरा नाम है ये क्या कम है हमारे इश्क़ का दिलकश असर हुआ रौशन किसी की आँख में आँसू है ज़ुल्फ़ बरहम हे