तुम्हें गिला ही सही हम तमाशा करते हैं मगर ये लोग भी क्या कम तमाशा करते हैं दिखाई देते नहीं अव्वलन मिरे दरवेश कहीं मिलें तो ब-रक़सम तमाशा करते हैं ये ख़ास भीड़ है मरहूम बादशाहों की यहाँ सिकन्दर-ए-आज़म तमाशा करते हैं शरीक-ए-कार-ए-इबादत नहीं रहे कि ये लोग दरून-ए-मजलिस-ए-मातम तमाशा करते हैं बस एक पाँव थिरकता है रात-दिन मुझ में चहार-सू कई आलम तमाशा करते हैं खुला है आज भी उस ख़ानक़ाह-ए-इश्क़ का दर मलंग आज भी पैहम तमाशा करते हैं तुयूर देखने आते हैं मेरी एक झलक हज़ार बरगद-ओ-शीशम तमाशा करते हैं ये शहर मजमा-ए-ख़ाली से गर नहीं है ख़ुश तो आओ मिल के अज़ीज़म तमाशा करते हैं कुछ ऐसे लोग हैं मेरे भी मिलने वाले लोग जो बर-जनाज़ा-ओ-चिहलुम तमाशा करते हैं