तुम्हें हाँ किसी से मोहब्बत कहाँ है ज़रा देखिए तो वो सूरत कहाँ है भला अब किसी से सुनो बात क्या तुम तुम्हें अपनी बातों से फ़ुर्सत कहाँ है हर इक बात पर रोए से देते हो अब वो शोख़ी कहाँ वो शरारत कहाँ है पड़े रहते हो पहरों ही मुँह लपेटे वो जल्सा कहाँ है वो सोहबत कहाँ है कोई कुछ कहे अब तुम्हें कुछ न बोलो वो तेज़ी कहाँ वो ज़राफ़त कहाँ है वो लग चलना हर इक से आफ़त तुम्हारा वो तुंदी वो शोख़ी वो फ़रहत कहाँ है कोई जानता भी नहीं अब तो तुम को वो पहली सी ख़ुश्बू में शोहरत कहाँ है तुम्हीं देखो और ग़ैर की बातें सुनना वो शान अब कहाँ है वो शौकत कहाँ है तुम्हें हो अदू ही का मिलना मुबारक अदू की सी हम में लियाक़त कहाँ है 'निज़ाम' आप ही आप आएगा याँ पर यहाँ रश्क सहने की ताक़त कहाँ है