तुंद-ख़ू हवा भी कब काम कर सकी तन्हा आंधियों में रौशन है शम-ए-ज़िंदगी तन्हा साथ साथ चलते हैं ग़म रह-ए-मसर्रत में रास किस को आया है लम्हा-ए-ख़ुशी तन्हा और तेज़ होता है वहशतों के आलम में क्या हवा बुझाएगी रक़्स-ए-शो'लगी तन्हा सुब्ह के मुसाफ़िर को कौन रोक सकता है रास्ता बनाता है सैल-ए-रौशनी तन्हा रह गए सभी पीछे ज़ो'म-ए-ख़ुद-नुमाई में काम आ गया अपना जज़्ब-ए-बे-ख़ुदी तन्हा जिस जगह फ़रिश्तों के भी क़दम नहीं पहुँचे ले गया मुझे मेरा ज़ौक़-ए-आगही तन्हा बुलबुलों के नग़्मे थे चार सू जहाँ 'सिद्दीक़' ख़ेमा-ज़न गुलिस्ताँ में अब है ख़ामुशी तन्हा