तुर्फ़ा चमन खिला है दिल-ए-दाग़-दार का या'नी ख़िज़ाँ से काम लिया है बहार का कट जाए पत्ता कब वरक़-ए-रोज़गार का क्या ए'तिबार हस्ती-ए-ना-पाएदार का मदफ़न है इक शहीद-ए-ग़रीब-उद-दयार का कतबा बता रहा है ये लौह-ए-मज़ार का पहुँचा सबा के साथ वो कूचे में यार के देखो तो हौसला मिरे मुश्त-ए-ग़ुबार का जन्नत का सब्ज़-बाग़ न ज़ाहिद दिखा मुझे मेरे भी घर में पेड़ लगा है अनार का बारा-दरी में रहता हूँ 'शो'ला' शरफ़ ये है अस्ना-अशर हूँ शुक्र है परवरदिगार का