टूट कर गिर चुके हैं पात बहुत ऐ ख़िज़ाँ बढ़ गई है बात बहुत दिल समझता है दिल की बात बहुत आँखें बाक़ी मुरासलात बहुत भीगी पलकें थीं सोने वाले की घर टपकता था सारी रात बहुत आदमी बन के हम को मिलते हैं चलते फिरते अजाइबात बहुत बोझ लगते हैं इक जहान को हम हल्की हल्की है काएनात बहुत सब को प्यारे हसीन लगते हैं अपने अपने मुशाहिदात बहुत हाँ उसी ने बिसात उल्टी है खाई रह रह के जिस ने मात बहुत इक तमन्ना है मुस्कुराने की ग़म लगाए हुए हैं घात बहुत किस ने उन को ख़ुलूस समझा है दिल को लगता है दिल की बात बहुत