टूटा है बस ख़ुशी का भरम और कुछ नहीं पाया है सिर्फ़ दर्द-ओ-अलम और कुछ नहीं मुझ पर गराँ ये हिज्र की अब काली रात है तन्हाइयों में घुटता है दम और कुछ नहीं बेचैनियों के साथ टहल कर तमाम रात पाँव में रह गए हैं वरम और कुछ नहीं मुँह मोड़ना वो दिल का जलाना मिरे हबीब ढाए गए हैं मुझ पे सितम और कुछ नहीं धड़कन उदास दिल पे उदासी की धूप है लिपटा है मुझ से तेरा ये ग़म और कुछ नहीं 'हैदर' की धड़कनों की सदा है ये हम-नशीं दिल पे है तेरा नाम रक़म और कुछ नहीं