उदास रात का दुख जानता कोई भी न था मिरी तरह उसे पहचानता कोई भी न था सब अपने क़द को सनोबर समझ रहे थे वहाँ मिरे वजूद को गर्दानता कोई भी न था वो जिस की लाश सड़क पर पड़ी हुई थी कल उस एक शख़्स को पहचानता कोई भी न था सब अपनी धुन में मगन अपनी फ़िक्र में गुम थे नसीहतों को मिरी मानता कोई भी न था मैं अजनबी था वहाँ सब के वास्ते 'असअद' तिरे नगर में मुझे जानता कोई भी न था