उदास उदास सर-ए-साग़र-ओ-सुबू भी मैं यम-ए-नशात की इक मौज-ए-तुंद-ख़ू भी मैं मुझी में गुम हैं कई तीरगी-ब-कफ़ रातें ज़िया-फ़रोश सर-ए-ताक़-ए-आरज़ू भी मैं मुझी से क़ाएम-ओ-दाएम हैं घर के सन्नाटे तुम्हारी बज़्म-ए-तमन्ना की हाव-हू भी मैं मिरे ही ज़ख़्म-ए-तमन्ना में सौ तरह के रंग भरी बहार में महरूम-ए-रंग-ओ-बू भी मैं जो राह चलते मिरी सम्त आँख भी न उठाए उसी की बज़्म का मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू भी मैं जिसे सँवार के ख़ुद भी बिखरता जाता हूँ उस एक गौहर-ए-सद-ज़ौ की आबरू भी मैं कुछ ऐसे तौर से चमका है दिल का दाग़-ए-शिकस्त कि आज तक नहीं हसरत-कश-ए-रफ़ू भी मैं नज़र में तेरे हर अंदाज़ को सजाए हुए मिसाल-ए-आईना भी मैं लहू लहू भी मैं मैं आज साज़-ए-दिल-ओ-जाँ पे गाऊँ कौन सा गीत तुम्हारे पास भी दुनिया के रू-ब-रू भी मैं तुम्हारी बरहम से उठने का भी ख़याल मुझे ज़रा सी देर ठहरने का हीला-जू भी मैं ख़ुद अपने आप से ऐसा बिछड़ गया हूँ 'नसीम' कि अब मक़ाम भी मंज़िल भी जुस्तुजू भी मैं