उड़ते गुलों के साए में बैठें जो शादमाँ सुख-चैन अपनी ख़ाक के पहलू में है कहाँ रोग़न उजालता है गुलों का नफ़स के तार साँसों में डोलती हैं चराग़ों की नर्मियाँ पाँव की राह बह गया दिल को मुहीत झाग किन आबी-नर्गिसों के खुले सर पे बादबाँ आँखों के आबगीनों में है केसरी बहार चेहरे के मादनों में ख़िज़ाओं की ज़र्दियाँ फिसलन के पत्थरों से लगी झूलती रहें बादल छटा तो उड़ गईं सावन की बस्तियाँ बंसारियों में बंसरी बाजी घटाओं की अफ़ई हवा में खिल उठे खोल अपनी छतरियाँ