उड़ते हुए जुगनू मिले ख़ामोश फ़ज़ा में क्या उस ने लगा दी है कहीं आग हवा में आग़ोश से ममता के मिली दौलत-ए-ईमाँ तासीर अजब होती है ये माँ की दुआ में इक़रार की बातें कभी इंकार की आदत कुछ रंग अजब आया नज़र उस की अदा में शायद कोई गुज़रा है लिए हाथ में पत्थर इक शोर है ख़ामोश दरीचों की सदा में पत्ते भी दरख़्तों के नज़र आए बरहना पतझड़ लिए आई है बहार अब के फ़ज़ा में दौलत के ख़ुदाओं ने 'ज़फ़र' ये नहीं सोचा पैवंद लगे रहते हैं मुफ़्लिस की क़बा में