उफ़ क्या मज़ा मिला सितम-ए-रोज़गार में क्या तुम छुपे थे पर्दा-ए-लैल-ओ-नहार में सौ सज्दे एक लग़्ज़िश-ए-मस्ताना-वार में अल्लाह क्या अदा है तिरे बादा-ख़्वार में रोकूँ तो मौज-ए-ग़म को दिल-ए-बे-क़रार में साग़र छलक न जाए कफ़-ए-राशा-दार में किस से हो फिर उम्मीद कि तार-ए-नज़र मिरा ख़ुद जा के मिल गया सफ़-ए-मिज़्गान-ए-यार में ख़ुद हुस्न बे-नियाज़ नहीं फ़ैज़-ए-इश्क़ से ख़ू मेरे दिल की है निगह-ए-बे-क़रार में वो मस्त-ए-नाज़ हुस्न मैं सरशार-ए-आरज़ू वो इख़्तियार में हैं न मैं इख़्तियार में आशोब-ए-इज़्तिराब में खटका जो है तो ये ग़म तेरा मिल न जाए ग़म-ए-रोज़गार में बाक़ी रहा न कोई गिला वक़्त-ए-वापसीं क्या कह गए वो इक निगह-ए-शर्मसार में इक मश्क़-ए-इज़्तिराब का रक्खा है नाम इश्क़ उफ़ बेकसी कि वो भी नहीं इख़्तियार में बज़्म-ए-सुख़न में आग लगा दी 'सुहैल' ने क्या बिजलियाँ थीं ख़ामा-ए-जादू-निगार में