उफ़ ये दिल हादसों से उभरता नहीं क्यूँ ये कम्बख़्त मुक़द्दर सँवरता नहीं एक हम हैं कि हम पर घड़ों पड़ गया एक वो हैं कि उन पर ठहरता नहीं वाँ तो फ़ितरत में शामिल है और हम पे याँ ग़ैरियत का गुमाँ तक गुज़रता नहीं था मुक़द्दस वो मानिंद-ए-जन्नत कभी कू-ए-जानाँ से अब मैं गुज़रता नहीं किस कशाकश में हैं ज़िंदगी-ओ-क़ज़ा साँस चलती नहीं दम निकलता नहीं