उजड़ा हुआ शहर फिर बसाऊँ ये हौसला अब कहाँ से लाऊँ टूटे हुए आइने में ख़ुद को मैं देख जो लूँ तो डर न जाऊँ ज़ख़्मों से भरे चमन में रह कर फूलों से महकते गीत गाऊँ ऐ काश वफ़ा की रौशनी से उम्मीद का इक दिया जलाऊँ तजदीद-ए-वफ़ा के आसरे पर ज़ख़्मों की चुभन भी भूल जाऊँ अपना ही लहू रविश रविश पर ऐ मेरे चमन किसे दिखाऊँ