उम्मीद-ए-वस्ल उस से ख़ुदा की क़सम नहीं कहते हैं अर्ज़-ए-बोसा पे वो दम-ब-दम नहीं उस का तवाफ़ करते हैं उश्शाक़-ए-रोज़-ओ-शब कू-ए-सनम भी रुत्बे में का'बे से कम नहीं मेरे सवाल-ए-वस्ल को लिल्लाह रद न कर देख ऐ सनम ये शेवा-ए-अहल-ए-करम नहीं हूरों का तुझ में हुस्न है परियों की शोख़ियाँ ऐ बुत क़सम ख़ुदा की किसी से तू कम नहीं याँ दर्द-ए-दिल से मुझ को नहीं चैन अब घड़ी उन को क़रार शोख़ियों से एक दम नहीं नाज़ाँ हों अपने बख़्त-ए-सियह पर न किस तरह ये तीरगी में यार की ज़ुल्फ़ों से कम नहीं आँखें जो रोने में तो तड़पने में दिल है फ़र्द वो अब्र से तो ये किसी बिजली से कम नहीं अपने लिए मैं उन से रखूँ अब उमीद क्या सुनता हूँ मर्ग-ए-ग़ैर का कुछ उन को ग़म नहीं तुम इम्तिहान-ए-ग़ैर कभी करके देख लो राह-ए-वफ़ा में वो कभी साबित-क़दम नहीं जो काम उन के लब से वो तेरे क़दम से हो ठोकर भी तेरी कुछ क़ुम-ए-ईसा से कम नहीं किस दम नहीं है यार की तेग़-ए-निगह की याद किस वक़्त मेरे क़त्ल का सामाँ बहम नहीं हम बेवफ़ाइयाँ न करेंगे अदू की तरह तुम को वही ख़याल अबस है वो हम नहीं अपनी वफ़ा का ज़िक्र हसीनों में रह गया दुनिया में नाम आज हमारा है हम नहीं आँखें जो रोईं हिज्र में इक हश्र हो बपा ये दो हबाब नूह के तूफ़ाँ से कम नहीं मम्नून हूँ ख़ुदा की इनायत का ऐ 'फहीम' राहत का मेरे कौन सा सामाँ बहम नहीं