उम्र आख़िर है जुनूँ कर लूँ बहाराँ फिर कहाँ हाथ मत पकड़ो मिरा यारो गिरेबाँ फिर कहाँ चश्म-ए-तर पर गर नहीं करता हवा पर रहम कर दे ले साक़ी हम को मय ये अब्र-ए-बाराँ फिर कहाँ यार जब पहने जवाहिर कर दे ऐ दिल जी निसार जल चुक ऐ परवाने ये रंगीं चराग़ाँ फिर कहाँ इस तरह सय्याद कब आज़ाद छोड़ेगा तुम्हें बुलबुलो धूमें मचा लो ये गुलिस्ताँ फिर कहाँ है बहिश्तों में 'यक़ीं' सब कुछ व-लेकिन दर्द नईं भर के दिल रो लीजिए ये चश्म-ए-गिर्यां फिर कहाँ