उम्र भर बहते हैं ग़म के तुंद-रौ धारों के साथ जाने क्यूँ होते हैं इतने ज़ुल्म फ़नकारों के साथ अब्र की सूरत बरसते हैं बुलंद-ओ-पस्त पर हम नहीं आँसू बहाते लग के दीवारों के साथ ज़ेहन के पर्दे पे रक़्सिंदा हैं प्यासी सूरतें हम नशे में कैसे बह सकते हैं मय-ख़्वारों के साथ रोज़ ख़ून-ए-आरज़ू होता है फिर भी प्यार है हम को ऐ हस्ती तिरे दिलचस्प बाज़ारों के साथ हम-सफ़र है ख़ाक-ओ-बाद-ओ-आतिश-ओ-आब ऐ 'हज़ीं' काश निभ जाए हमारी अब इन्ही चारों के साथ