उम्र भर दुनिया को समझाता रहा ख़ुद फ़रेब-ए-ज़िंदगी खाता रहा रौशनी आँखों में बाक़ी थी न थी वो नज़र में था नज़र आता रहा ज़िंदगी क्या थी तिरे जाने के बअ'द साँस था आता रहा जाता रहा इस तरह ढूँढोगे इक दिन तुम मुझे जैसे कुछ खोया गया जाता रहा अपनी सूरत ही न पहचानी गई वक़्त आईना तो दिखलाता रहा अपने ही टूटे खिलौनों से 'रईस' ज़िंदगी भर दिल को बहलाता रहा