उम्र भर एक मोहब्बत की कमी रहती है अश्क बह जाएँ तो आँखों में नमी रहती है धूप निकले तो पिघलते नहीं दिल के मौसम एक दो रोज़ तो ये बर्फ़ जमी रहती है मैं कभी इश्क़ में पसपा नहीं होने वाला जंग हारूँ भी तो साबित-क़दमी रहती है इस तरह उस की मोहब्बत का है बादल मुझ पर कहकशाँ जैसे फ़ज़ाओं में थमी रहती है माएँ तो सब की ज़माने से गुज़र जाती हैं दस्त-ए-शफ़क़त की बहर-हाल कमी रहती है